पाणिनीय शोध संस्थान

पाणिनीय शोध संस्थान (कोसल संस्कृत समिति)

महामना चाणक्य ने कहा है कि शास्त्राणामपरिरक्षणेन राष्ट्रमपरिरक्षितं भवति। शास्त्रों की रक्षा नहीं करेंगे तो राष्ट्र की रक्षा भी नहीं होगी। अर्थात् राष्ट्र की रक्षा करना है तो शास्त्र पढ़ना चाहिये, क्योंकि हमारे वेदादिशास्त्र और हमारा विराट् संस्कृत वाङ्मय ही हमारी और हमारे राष्ट्र की पहिचान हैं। इन्हें संस्कृत के बिना नहीं जाना जा सकता है और संस्कृत को पाणिनीयव्याकरण के बिना नहीं जाना जा सकता है। अतः भगवान् पाणिनि की अष्टाध्यायी ही भारत और भारतीयता को जानने का एकमात्र उपाय है। इसे ही प्रकट करने के लिए पाणिनीय शोध संस्थान (कोसल संस्कृत समिति) की स्थापना सन् २००० में की गई थी। इस संस्था का उद्देश्य आम जनमानस में संस्कृत भाषा का व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार करना है। वर्त्तमान में यहाँ १० से १५ छात्र स्थायी रूप से रहकर अध्ययन करते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ प्रतिदिन विविध आयु-वर्ग के ८-१० स्थानीय बच्चे संस्कृत व्याकरण का अध्ययन करने आते हैं।

इसके अलावा पौष्पी प्रक्रिया के अनुसार पाणिनीय व्याकरण की ऑनलाइन कक्षायें भी अनेक वर्गों में चलती हैं।​

संस्थान की अध्यक्षा श्रीमती डॉ. पुष्पा दीक्षित संस्कृत भाषा के प्रति सर्वतोभावेन समर्पित हैं। आपका एक अपना लगभग १०००० पुस्तकों का पुस्तकालय है जिसमें संस्कृत वाङ्मय की पुस्तकें हैं, जहाँ आकर शोधच्छात्र अपने विषयों से सम्बन्धित पुस्तकों का अवलोकन कर सकते हैं।

जन साधारण में संस्कृत की रुचि बढ़ाने के लिये, संस्कृत भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिये वे निरन्तर गीतापाठ, स्तोत्रपाठ तथा शुद्ध संस्कृत उच्चारण की शिक्षा स्थानीय लोगों को निःशुल्क देती रहती हैं।

रामायण, गीता और भागवत के प्रवचनों के माध्यम से भी आप लोगों को संस्कृत भाषा के प्रति जागरूक करती रहती हैं। आपका विश्वास है कि संस्कृत से ही भारत की पहिचान है। संस्कृत की रक्षा से ही राष्ट्र की रक्षा हो सकती है। अतः संस्कृत भाषा को जन-जन तक पहुँचाना ही आपके जीवन का एकमात्र लक्ष्य है।

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