विद्वत्सम्मति

पुष्पादीक्षितया साक्षात्कृता पाणिनीया  पौष्पी प्रक्रिया

डॉ. पुष्पा दीक्षित बीसवीं तथा इक्कीसवीं खीष्ट शताब्दी की महामहिम वैयाकरण हैं। उनकी कृतियों से यह भारतवर्ष कृतार्थ है। उन्होंने अध्यापनक्रम का नव्यपद्धति में समागम किया है। इस प्रकार नव्यव्याकरण के सतत विकास की यह परम्परा भट्टोजिदीक्षित से लेकर पुष्पा दीक्षित तक अविच्छिन्न चल रही है। पाणिनि ने आज हमको पुष्पादीक्षित के अष्टाध्यायी के नव्यक्रम के रूप में जो दर्शन दिया है, वह वाग्योग की सहज समाधि का ध्यानगम्य तत्त्व है, जो बहिर्दृष्टि से प्रत्यक्ष हो उठा है। हम आज इस परम्परा में उनकी कृति को इदन्ता के वृत्त में लेकर कृतार्थ हो सकते हैं। आगे शुभाशीर्वाद है कि वे अन्य वेदाङ्गों पर कार्य करके इस पद्धति को पूर्णता दें। 
आचार्य डॉ. बच्चूलाल अवस्थी

आजकल सिद्धान्तकौमुदी के अध्येताओं और अध्यापकों के प्रमाद से अष्टाध्यायी के अनुसार कौमुदी के पठन-पाठन की परम्परा अस्त व्यस्त हो गई है, अतः इसके पुनरुद्धार की महती आवश्यकता थी। यह कार्य डॉ. पुष्पा दीक्षित ने निष्पन्न किया है, अतः व्याकरण जगत् के लिये पुष्पा दीक्षित जी का उपकार अनन्तकाल तक स्मरण किया जायेगा। इनके इस अदम्य पुरुषार्थ को देखकर हम इन्हें लौहपुरुष कहें या इनकी देदीप्यमान कीर्ति को देखकर हम इन्हें स्वर्णपुरुष कहें, वस्तुतः ये सर्वथा अनुपम हैं।
आचार्य डॉ. रामयत्न शुक्ल

पाणिनि को विश्व का सर्वश्रेष्ठ भाषावैज्ञानिक निरूपित करने वाले विश्व के मनीषी आज पाणिनि के व्युत्त्पत्तिप्रधान सर्वाङ्गीण प्रशस्तपथ का परित्याग करके टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डियों में भटकते जा रहे हैं। उनके लिये श्रीमती पुष्पा दीक्षित ने महर्षि पाणिनि की जिस ‘सूक्ष्मेक्षिका’ को प्रकट किया है, वह न केवल विद्यार्थियों में अपितु परम्परागत विद्वानों में भी ‘पाणिनीय महाशास्त्र’ के प्रति अभिनव रुचि जगायेगी एवं शोध की नई-नई दिशाओं का निर्माण करने में सहायक होगी। उनके ‘पञ्चोपाङ्ग’, ‘पञ्चमहोत्सर्ग’ और ‘इडागमविधान’ आदि के व्याख्यान, उनकी अनुपम व्याकरणसाधना के अभिव्यञ्जक हैं 
आचार्य डॉ. रामकरण शर्मा

मैं संस्कृत व्याकरण की इस सर्वथा नवीन वैज्ञानिक सारणी का दिग्दर्शन कराने वाली ‘अष्टाध्यायी सहज बोध’ पद्धति का हृदय से सर्वतोभावेन अनुमोदन करता हूँ। डॉ. पुष्पा दीक्षित का यह ‘अष्टाध्यायी सहजबोध’ महामुनि पाणिनि की अन्तरात्मा को निश्चित ही आनन्दित करेगा। इससे संस्कृत साहित्य का अत्यन्त कल्याण सम्भावित है, ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है
– आचार्य डॉ. रामप्रसाद त्रिपाठी

श्रीमती पुष्पा दीक्षित ने विश्वमान्य सिद्धान्तकौमुदी के प्रक्रियाक्रम को निरस्त करके, अष्टाध्यायी के उस प्रक्रियाक्रम को प्रकट किया है, जिसे महर्षि पाणिनि ने शब्दसिद्धि के लघुतम और सर्वाङ्गीण उपाय के रूप में विश्व को दिया था। अतः व्याकरणजगत् में एक सर्वथा नवीन प्रस्थान की स्थापना करने के कारण उनका नाम व्याकरण की आचार्य परम्परा में सम्मिलित होना चाहिये। उनके पहिले प्रक्रिया का यह क्रम विश्व में अज्ञात था।
आचार्य डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी

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