:: पाणिनीय पौष्पी पाठशाला ::
पाणिनि के इस विज्ञान को जन जन में स्थिर करने के लिये ‘पाणिनीय शोध संस्थान’ में ‘पाणिनीया पौष्पी पाठशाला’ का आयोजन होता है। इस पाठशाला में व्याकरण के अध्ययन के हेतु देश विदेश से छात्र तथा प्राध्यापक उपस्थित होते रहते हैं, जिनके लिये आवास, भोजन तथा शिक्षा निःशुल्क है। यह संस्था पिछले २५ वर्षों से अनवरत इस कार्य को कर रही है।
ऑनलाइन पाठशाला
जो छात्र ऑनलाइन पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी समय-समय पर नए सत्र शुरू किये जाते हैं। ये सारी कक्षाएँ निःशुल्क होती हैं। ऑनलाइन अध्यापन सन् २०२० से प्रारम्भ किया गया है। इसमें अष्टाध्यायी की पाँचों प्रक्रियाओं और कारक का अध्यापन होता है। इन सत्रों में अब तक लगभग ५०० छात्रों ने अध्ययन किया है।
ऑनलाइन सत्र में पढ़ने के लिये नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके फ़ार्म भरें तथा वेबसाइट पर दिये गये मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क करें।
पाणिनये नमः
पौष्पी नव्यसिद्धान्तकौमुदी
अष्टाध्यायी जगन्माता यस्य चित्तात्समुत्थिता। वेदानामुपकाराय तस्मै पाणिनये नमः ।। १ ।।
अष्टकं पाणिनेर्दिव्यं शब्दशास्त्रमलौकिकम् । आकुमारं यशो यस्य तस्मै पाणिनये नमः ।। २ ।।
शब्दरत्नाकरोद्भूतं शैवं रत्नचतुर्दशम् । शास्त्रे येन समायोजि तस्मै पाणिनये नमः ।। ३ ।।
ब्रह्माण्डारणिनिर्मन्थादुत्थितज्ञानवह्निना। निर्ममे शब्दशास्त्रं यस्तस्मै पाणिनये नमः ।।४।।
व्याकृत्य दर्शितं येन त्रय्या वाचः परं पदम् । सिद्धिसोपानभूतं यत् तस्मै पाणिनये नमः ।।५।।
शब्दब्रह्म समाराध्य कृतवान् यो विलक्षणम् । सर्वाश्चर्यमयं शास्त्रं तस्मै पाणिनये नमः ।। ६ ।।
यस्य भासावभासन्ते वैदिका लौकिकास्तथा। शब्दा रूपं विवृत्येमे तस्मै पाणिनये नमः ।। ७ ।।
वाचं कामदुघां कर्तुं दिव्यं शास्त्रं प्रणीतवान् । भवं प्रसाद्य भक्त्या यस्तस्मै पाणिनये नमः ।। ८ ।।
यः परं पदमन्वेष्टुं पदराशिं व्यबीभजत् । मोक्षमार्गप्रकाशाय तस्मै पाणिनये नमः ।। ९।।
यतो नावर्तते जीवः शब्दशास्त्रमुपासिता । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै पाणिनये नमः ।। १० ।।
येनौक्षरसमाम्नायमधिगम्य महेश्वरात् । कृत्स्रं व्याकरणं प्रोक्तं तस्मै पाणिनये नमः ।। ११ ।।
येन धौता गिरः पुंसां विमलैः शब्दवारिभिः। तमश्चाज्ञानजं भित्रं तस्मै पाणिनये नमः ।।१२।।
अज्ञानान्धस्य लोकस्य ज्ञानामजनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै पाणिनये नमः ।। १३ ।।
सदाशिवसमारम्भां तथा पाणिनिमध्यमाम् । अस्मदाचार्यपर्यन्तां वन्दे गुरुपरम्पराम् ।। १४ ।।
उपासनीयं यत्नेन शास्त्रं व्याकरणं महत् । प्रदीपभूतं सर्वांसां विद्यानां यदवस्थितम् ।। १५ ।।
नत्वा वाचामधिष्ठात्रीं देवतां देववन्दिताम् । सिद्धान्तकौमुदी पौष्पी नव्येयं क्रियते मया ।। १ ।।
यदनुग्रहमात्रेण पाणिनिस्तपसि स्थितः । शब्दाम्भोधेरपारस्य पारदृश्वा क्षणेऽभवत् ।। २ ।।
चिदानन्दकला विष्णोः सैव चित्ते चकासती । पाणिनेः क्रमरक्षायै हठान्मां संन्ययूयुजत् ।। ३ ।।
गङ्गोत्तर्या यथा गङ्गा प्रवहन्ती निरर्गला। क्रमं कञ्चित् समाश्रित्य निष्पुनाति जगत्त्रयम् ।।४।।
तथैव क्रमधारेयं पाणिनेर्निखिलं जगत् । विधत्ते विस्मितं सद्यः पुनाना हृदयं बुधाम् ।। ५ ।।
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्त्रं लोकमिमं रविः । सर्वे शब्दास्तथैवास्या आलोके संप्रकाशिताः ।। ६ ।।
पाणिनिः क्रम एवास्ति क्रम एव तपः फलम् । क्रमहानेः परा हानिः शाब्दिकस्य न विद्यते ।। ७ ।।
राम एकेन नाराचेनाव्यात्सीत् सप्ततालकान् । शब्दराशीन् तथासंख्यानेकसूत्रं प्रविध्यति ।। ८ ।।
तत्क्रमेण निबद्धेयं नव्यसिद्धान्तकौमुदी । शब्दराशेरनन्तस्याप्यन्तं निर्दिशति क्षणात् ।। ९ ।।
नास्त्यत्र क्लेशलेशोऽपि न संशीतिर्न सम्भ्रमः । अनया शब्दशास्त्रस्य पारदृश्वा भवेज्जनः ।। १० ।।
पाणिनीयक्रमेऽयुद्ध भाषां कालसमेधिताम् । वार्त्तिकैस्तमहं वन्दे मुनिं कात्यायनं हृदा ।। ११ ।।
पाणिनेर्भवनं दिव्यं यन्महत्सुप्रतिष्ठितम् । शेषोऽप्यशेषमज्ञासीद् वैत्रास्थाय सुनिश्चितम् ।।१२।।
दंशं दंशं फणौघेनाष्टाध्याय्या मर्मजालकम् । प्राचीकटद् रहस्यं यस्तस्मै भाष्यकृते नमः ।। १३ ।।
नत्वा मुनित्रयं पुष्पादीक्षितेयमनन्तशः । सिद्धान्तकौमुदीं नव्यां करोति क्रममाश्रिताम् ।। १४ ।।
सामग्र यं सर्वसूत्राणां स्फोरयन्ती विना श्रमम् । सिद्धान्तकौमुदी नव्या भव्याय जगतो भवेत् ।। १५ ।।
व्याकरणशास्त्र में नवीन उद्भावना
लौकिक, वैदिक उभय शब्दों का साधक होने के कारण वेदों की रक्षा का उपायभूत पाणिनीय व्याकरणशास्त्र सारे वेदाङ्गों में प्रधान है। इसे पढ़ने की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं – एक पद्धति है, पाणिनीय अष्टाध्यायी के सूत्रों के अर्थों को पाणिनीय अष्टाध्यायी क्रम से पढ़ना। इस पद्धति में यह दोष है कि प्रक्रिया को जानने के लिये पूरी अष्टाध्यायी को जानना पड़ता है, साथ ही इसमें अनेक प्रकरणों का व्यामिश्रण हो जाता है, अधिकार, अनुवृत्ति और सूत्रों का पूर्वापर विज्ञान ‘अष्टाध्यायी’ के प्राण हैं। दूसरी पद्धति है “प्रक्रियापद्धति” इसमें एक लक्ष्य को लेकर सूत्र उपस्थित किये जाते हैं। इससे वह लक्ष्य तो सिद्ध हो जाता है, किन्तु सूत्र का शेष भाग अव्याख्यात ही रह जाता है। प्रक्रियाग्रन्थ पहिले ‘प्रयोग’ को सामने रख लेते हैं। उस प्रयोग के लिये सारे सूत्र लाकर वहाँ खड़े कर देते हैं। इससे ‘अष्टाध्यायी’ की व्यवस्था भग्न होती है और ‘अधिकार सूत्रों’ का मर्म स्पष्ट नहीं हो पाता। अतः इन दो पद्धतियों के रहते हुए ‘पाणिनीय अष्टाध्यायी’ के विज्ञान को स्पष्ट करते हुए एक प्रयोग को बनाने की प्रक्रिया बतलाकर उसके समानाकृति सारे प्रयोगों को उसी स्थल पर दर्शाकर इदमित्थम् बतला देने वाली पद्धति अभीष्ट थी, जिससे समग्र ‘अष्टाध्यायी’ अत्यल्प काल में हृद्गत हो सके। इस तीसरी पद्धति का आविष्कार आचार्या पुष्पा दीक्षित ने किया है। वस्तुतः पाणिनिशास्त्र गणितीय विधि पर आश्रित है और पुष्पा दीक्षित ने उस विधि का आविष्कार किया है, अतः पाणिनीय व्याकरण पर पुष्पा दीक्षित का यह कार्य वस्तुतः एक क्रान्ति है।
कार्यक्षेत्र
पाणिनीया पौष्पी पाठशाला
पाणिनि के इस विज्ञान को जन जन में स्थिर करने के लिये ‘पाणिनीय शोध संस्थान’ में ‘पाणिनीया पौष्पी पाठशाला’ का आयोजन होता है। इस पाठशाला में व्याकरण के अध्ययन के हेतु देश विदेश से छात्र तथा प्राध्यापक उपस्थित होते रहते हैं, जिनके लिये आवास, भोजन तथा शिक्षा निःशुल्क है।
प्रकाशन
डॉ. पुष्पा दीक्षित ने लगभग ४० वर्षों के तप से ‘पाणिनीय अष्टाध्यायी’ के प्रक्रियाविज्ञान को स्पष्ट करने वाली एक ऐसी सर्वथा नवीन गणितीय विधि आविष्कृत की है, जिससे ‘अष्टाध्यायी’ का समग्र प्रक्रियाविज्ञान चार मास में हृद्गत हो जाता है। पाणिनि के बाद से लेकर अभी तक ३५०० वर्षों में पाणिनि को किसी ने इस प्रकार व्याख्यात नहीं किया है।
पाणिनीया पौष्पी प्रक्रिया
आपने पचास वर्षो के सतत चिन्तन से भगवान पाणिनि के हार्द का साक्षात्कार करके ‘पाणिनीया पौष्पी प्रक्रिया’ के रूप में शब्दसिद्धि के ठीक उसी मार्ग को प्रकट किया है, जिसका दर्शन भगवान् पाणिनि ने अनन्त शब्दराशि के व्युत्पादन के लघुतम उपाय के रूप में किया था।
पाणिनीय शोध संस्थान (कोसल संस्कृत समिति)
पाणिनीय शोध संस्थान (कोसल संस्कृत समिति) की स्थापना सन् २००० में की गई थी इस संस्था का उद्देश्य आम जनमानस में संस्कृत भाषा का व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार करना है। वर्त्तमान में यहां १० से १५ छात्र स्थायी रूप से रहकर अध्ययन करते हैं।