अध्यक्षा, पाणिनीय शोध संस्थान (कोसल संस्कृत समिति)
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:: पाणिनीय पौष्पी पाठशाला ::
पाणिनि के इस विज्ञान को जन जन में स्थिर करने के लिये ‘पाणिनीय शोध संस्थान’ में ‘पाणिनीया पौष्पी पाठशाला’ का आयोजन होता है। इस पाठशाला में व्याकरण के अध्ययन के हेतु देश विदेश से छात्र तथा प्राध्यापक उपस्थित होते रहते हैं, जिनके लिये आवास, भोजन तथा शिक्षा निःशुल्क है। यह संस्था पिछले २५ वर्षों से अनवरत इस कार्य को कर रही है।
जो छात्र ऑनलाइन पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी समय-समय पर नए सत्र शुरू किये जाते हैं। ये सारी कक्षाएँ निःशुल्क होती हैं। ऑनलाइन अध्यापन सन् २०२० से प्रारम्भ किया गया है। इसमें अष्टाध्यायी की पाँचों प्रक्रियाओं और कारक का अध्यापन होता है। इन सत्रों में अब तक लगभग ५०० छात्रों ने अध्ययन किया है।
ऑनलाइन सत्र में पढ़ने के लिये नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके फ़ार्म भरें तथा वेबसाइट पर दिये गये मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क करें।
सामग्र यं सर्वसूत्राणां स्फोरयन्ती विना श्रमम् । सिद्धान्तकौमुदी नव्या भव्याय जगतो भवेत् ।। १५ ।।
व्याकरणशास्त्र में नवीन उद्भावना
लौकिक, वैदिक उभय शब्दों का साधक होने के कारण वेदों की रक्षा का उपायभूत पाणिनीय व्याकरणशास्त्र सारे वेदाङ्गों में प्रधान है। इसे पढ़ने की दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं – एक पद्धति है, पाणिनीय अष्टाध्यायी के सूत्रों के अर्थों को पाणिनीय अष्टाध्यायी क्रम से पढ़ना। इस पद्धति में यह दोष है कि प्रक्रिया को जानने के लिये पूरी अष्टाध्यायी को जानना पड़ता है, साथ ही इसमें अनेक प्रकरणों का व्यामिश्रण हो जाता है, अधिकार, अनुवृत्ति और सूत्रों का पूर्वापर विज्ञान ‘अष्टाध्यायी’ के प्राण हैं। दूसरी पद्धति है “प्रक्रियापद्धति” इसमें एक लक्ष्य को लेकर सूत्र उपस्थित किये जाते हैं। इससे वह लक्ष्य तो सिद्ध हो जाता है, किन्तु सूत्र का शेष भाग अव्याख्यात ही रह जाता है। प्रक्रियाग्रन्थ पहिले ‘प्रयोग’ को सामने रख लेते हैं। उस प्रयोग के लिये सारे सूत्र लाकर वहाँ खड़े कर देते हैं। इससे ‘अष्टाध्यायी’ की व्यवस्था भग्न होती है और ‘अधिकार सूत्रों’ का मर्म स्पष्ट नहीं हो पाता। अतः इन दो पद्धतियों के रहते हुए ‘पाणिनीय अष्टाध्यायी’ के विज्ञान को स्पष्ट करते हुए एक प्रयोग को बनाने की प्रक्रिया बतलाकर उसके समानाकृति सारे प्रयोगों को उसी स्थल पर दर्शाकर इदमित्थम् बतला देने वाली पद्धति अभीष्ट थी, जिससे समग्र ‘अष्टाध्यायी’ अत्यल्प काल में हृद्गत हो सके। इस तीसरी पद्धति का आविष्कार आचार्या पुष्पा दीक्षित ने किया है। वस्तुतः पाणिनिशास्त्र गणितीय विधि पर आश्रित है और पुष्पा दीक्षित ने उस विधि का आविष्कार किया है, अतः पाणिनीय व्याकरण पर पुष्पा दीक्षित का यह कार्य वस्तुतः एक क्रान्ति है।
कार्यक्षेत्र
पाणिनीया पौष्पी पाठशाला
पाणिनि के इस विज्ञान को जन जन में स्थिर करने के लिये ‘पाणिनीय शोध संस्थान’ में ‘पाणिनीया पौष्पी पाठशाला’ का आयोजन होता है। इस पाठशाला में व्याकरण के अध्ययन के हेतु देश विदेश से छात्र तथा प्राध्यापक उपस्थित होते रहते हैं, जिनके लिये आवास, भोजन तथा शिक्षा निःशुल्क है।
डॉ. पुष्पा दीक्षित ने लगभग ४० वर्षों के तप से ‘पाणिनीय अष्टाध्यायी’ के प्रक्रियाविज्ञान को स्पष्ट करने वाली एक ऐसी सर्वथा नवीन गणितीय विधि आविष्कृत की है, जिससे ‘अष्टाध्यायी’ का समग्र प्रक्रियाविज्ञान दस मास में हृद्गत हो जाता है। पाणिनि के बाद से लेकर अभी तक ३५०० वर्षों में पाणिनि को किसी ने इस प्रकार व्याख्यात नहीं किया है। इस प्रक्रिया का नाम पौष्पी प्रक्रिया है। इसका आश्रय लेकर जो पचास से अधिक ग्रन्थ लिखे गये हैं, उनकी जानकारी इसमें है।
आपने पचास वर्षो के सतत चिन्तन से भगवान पाणिनि के हार्द का साक्षात्कार करके ‘पाणिनीया पौष्पी प्रक्रिया’ के रूप में शब्दसिद्धि के ठीक उसी मार्ग को प्रकट किया है, जिसका दर्शन भगवान् पाणिनि ने अनन्त शब्दराशि के व्युत्पादन के लघुतम उपाय के रूप में किया था।
पाणिनीय शोध संस्थान (कोसल संस्कृत समिति) की स्थापना सन् २००० में की गई थी। इस संस्था में पौष्पी प्रक्रिया का आश्रय लेकर दस मास में अष्टाध्यायी का समग्र विज्ञान सिखाया जाता है। साथ ही संस्कृत भाषा का व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार करने के लिये आयोजन किये जाते हैं। वर्त्तमान में यहां १० से १५ छात्र स्थायी रूप से रहकर अध्ययन करते हैं।