विश्वं प्रकाशयन्ती दीक्षितपुष्पायाः पाणिनीया-पौष्पी-प्रक्रिया
महामना चाणक्य ने कहा है कि शास्त्राणामपरिरक्षणेन राष्ट्रमपरिरक्षितं भवति। शास्त्रों की रक्षा नहीं करेंगे तो राष्ट्र की रक्षा भी नहीं होगी। अर्थात् राष्ट्र की रक्षा करनी है तो शास्त्र पढ़ना चाहिये, क्योंकि हमारे वेदादिशास्त्र और हमारा विराट् संस्कृत वाङ्मय ही हमारी और हमारे राष्ट्र की पहिचान हैं। इन्हें संस्कृत के बिना नहीं जाना जा सकता है और संस्कृत को पाणिनीयव्याकरण के बिना नहीं जाना जा सकता है। अतः भगवान् पाणिनि की अष्टाध्यायी ही भारत और भारतीयता को जानने का एकमात्र उपाय है। विश्व के सारे भाषावैज्ञानिक इस विषय पर एकमत हैं कि महर्षि पाणिनि की अष्टाध्यायी विश्व का सबसे वैज्ञानिक तथा सबसे आश्चर्यजनक ग्रन्थ है। इसमें केवल संस्कृत का व्याकरण नहीं है, अपितु इसमें ऐसा अद्भुत विज्ञान है, जिसका आश्रय लेकर विश्व की किसी भी भाषा को व्याक्त किया जा सकता है। इसलिये विद्वानों ने इसे मानव मेधा का सर्वोच्च निदर्शन माना है। उनके द्वारा रचित अष्टाध्यायी वस्तुतः विश्व की सबसे बड़ी क्रान्तिकारी घटना है। इसमें एक ऐसा विज्ञान है, जिसको जानने से विश्व के किसी भी विज्ञान को समझने की प्रतिभा विकसित हो सकती है तथा बुद्धि का परम प्रकर्ष होता है। तर्कशक्ति विकसित होती है तथा मनोरोगों पर विजय हो सकती है किन्तु आज भारत में आधुनिक विज्ञान का तथा आधुनिक विषयों का जिस पद्धति से अध्ययन हो रहा है, उसमें सब कुछ बाहर से ठूँसा जा रहा है, जिसका सीधा परिणाम भारत की नई पीढ़ी है, जो अत्युच्च अध्ययन के बाद भी यन्त्रवद् विकसित हो रही है, यह बड़े भयावह भविष्य की सूचना है। यदि आधुनिक विषयों को पाणिनि महाशास्त्र की वैज्ञानिकता से जोड़कर पढ़ाया जाये तो राष्ट्र में अत्यन्त मेधावी पीढ़ी उत्पन्न की जा सकती है, जो आज लुप्तप्राय है।