पाणिनीय पौष्पी पाठशाला

पाणिनीय पौष्पी पाठशाला

महामना चाणक्य ने कहा है कि शास्त्राणामपरिरक्षणेन राष्ट्रमपरिरक्षितं भवति। शास्त्रों की रक्षा नहीं करेंगे तो राष्ट्र की रक्षा भी नहीं होगी। अर्थात् राष्ट्र की रक्षा करना है तो शास्त्र पढ़ना चाहिये, क्योंकि हमारे वेदादिशास्त्र और हमारा विराट् संस्कृत वाङ्मय ही हमारी और हमारे राष्ट्र की पहिचान हैं। इन्हें संस्कृत के बिना नहीं जाना जा सकता है और संस्कृत को पाणिनीयव्याकरण के बिना नहीं जाना जा सकता है। अतः भगवान् पाणिनि की अष्टाध्यायी ही भारत और भारतीयता को जानने का एकमात्र उपाय है। पाणिनि के इस विज्ञान को जन जन में स्थिर करने के लिये ‘पाणिनीय शोध संस्थान’ में ‘पाणिनीया पौष्पी पाठशाला’ का आयोजन होता है। इस पाठशाला में व्याकरण के अध्ययन के हेतु देश विदेश से छात्र तथा प्राध्यापक उपस्थित होते रहते हैं, जिनके लिये आवास, भोजन तथा शिक्षा निःशुल्क है। यह संस्था पिछले २५ वर्षों से अनवरत इस कार्य को कर रही है।

इस पाणिनीय कार्यशाला में भारत के अतिरिक्त अमेरिका से श्री नरेन्द्रन्, नेपाल से दावा एहासा, बाँगलादेश से लुब्ना मरियम, शिकागो से वरुण खन्ना, चीन से चाउ येन्, अमेरिका से स्वरूपदेव, अमेरिका से विश्वास वासुकि, केलिफोर्निया से मित्तल त्रिवेदी, अमेरिका के मेडिकल महाविद्यालय के छात्र ऋषभ रेवणकर, अमेरिका से सिद्धार्थ जगन्नाथ तथा अशोक विश्वनाथन और नेपाल से शताधिक छात्रों ने इस ‘पाणिनीय शोध संस्थान’ में आकर पौष्पी प्रक्रिया से पाणिनीय व्याकरण का अध्ययन किया है।

संस्था में प्रवेश के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके फ़ार्म भरें तथा दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क करें। फ़ार्म भरने से पहले नियमावली को ध्यान पूर्वक पढ़ें एवं इन नियमों का पालन कर पाने की स्थिति में ही फ़ार्म भरें।

पाणिनीय पौष्पी पाठशाला में प्रवेश की अर्हता

यू-ट्यूब में पाणिनीय पौष्पी पाठशाला के वीडियो उपलब्ध हैं। उनमें से सञ्ज्ञा और सन्धि इन दो पाठों का सम्यग्-अभ्यास करके छात्र इस पाणिनीय पौष्पी पाठशाला में प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं।

ऑनलाइन पाठशाला

जो छात्र ऑनलाइन पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए भी समय-समय पर नए सत्र शुरू किये जाते हैं। ये सारी कक्षाएँ निःशुल्क होती हैं। ऑनलाइन अध्यापन सन् २०२० से प्रारम्भ किया गया है। इसमें अष्टाध्यायी की पाँचों प्रक्रियाओं और कारक का अध्यापन होता है। इन सत्रों में अब तक लगभग ५०० छात्रों ने अध्ययन किया है। अष्टाध्यायी सहजबोध भाग-1 की रिकॉर्डिंग यू-ट्यूब पर उपलब्ध है। आप उन्हें नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से देख सकते हैं-

ऑनलाइन सत्र में पढ़ने के लिये नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके फ़ार्म भरें तथा वेबसाइट पर दिये गये मोबाइल नम्बर पर सम्पर्क करें।

वर्तमान में चल रहे ऑनलाइन सत्र के विवरण निम्नलिखित हैं-

ज़ूम लिंक https://us02web.zoom.us/j/85334644784?pwd=YTcyZTlac3B4eVAzdkhlK25vd3RvUT09
मीटिंग आईडी: 853 3464 4784
पासकोड: 863521

धात्वधिकारीयप्रक्रिया भाग 2 : सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार [समय 7-8 PM (IST)]          माताजी

स्वरप्रक्रिया : मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार [समय 7-8 PM (IST)]                  माताजी

सुबन्तप्रक्रिया : मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार [समय 8-9 PM (IST)]                 जाह्नवी जी

समासप्रक्रिया : सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार [समय 9-10 PM (IST)]                       अनिल जी

धात्वधिकारीयप्रक्रिया भाग 2 : प्रतिदिन [समय 6-7 PM (IST)]                मानसी जी

धात्वधिकारीय प्रक्रिया भाग 1 : सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार [समय 8-9 PM (IST)]         आदित्य जी

अभ्यास सत्र

धात्वधिकारीय प्रक्रिया भाग 2 :     सोमवार, बुधवार एवं शुक्रवार [समय 10-11 AM (IST)]      वर्धिनी जी

                                                मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार [समय 10-11 AM (IST)]     ललिता जी

                                                 मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार [समय 5-6 PM (IST)]         अनन्त जी

                                                 मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार [समय 8:15-9:15 PM (IST)]  सन्दीप जी

                           प्रतिदिन [समय 5-6 PM (IST)]                         अनमोल जी

धात्वधिकारीय प्रक्रिया भाग 1 :       मंगलवार, गुरुवार एवं शनिवार [समय 8-9 PM (IST)]       शुभम् जी

राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों में पाणिनिशाला

गणितीय विधि से पाणिनीय व्याकरण के अध्यापन हेतु, राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों में भी डॉ. पुष्पा दीक्षित को आहूत किया जाता रहा है, जिसमें छात्र तथा प्राध्यापक उपस्थित होते रहे हैं। आपकी पाणिनीय व्याकरण की एकमास की कार्यशालायें १९९६ से लेकर २०१६ तक प्रायः सागर, जयपुर, जोधपुर, शृङ्गेरी, बेंगलोर, हरिद्वार, दिल्ली, मैसूर इत्यादि स्थानों पर हो चुकी हैं। इस पद्धति से पढ़ा हुआ दस वर्ष का बालक भी किसी भी धातु के दसों लकारों में रूप बना सकता है। प्रक्रिया का यह चिन्तन सर्वथा अपूर्व है। इससे पूर्व इस प्रकार से अष्टाध्यायी का कभी भी, कोई विचार नहीं किया गया है। व्याकरण शास्त्र के महोदधि में साधारण से साधारण बालक भी मछली के समान तैरने लगे, यही इसका लक्ष्य है। उन्होंने नन्हें बालकों पर इसका प्रयोग किया है। वे खेलते-खेलते व्याकरण शास्त्र की प्रक्रिया को जान जाते हैं।

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