:: प्रकाशितग्रन्थ ::
भारत की संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। इसका सारा वाङ्मय संस्कृत भाषा में निबद्ध है। संस्कृत भाषा को जाने बिना इसे नहीं जाना जा सकता, और इसे जाने बिना भारत और भारतीयता को नहीं जाना जा सकता। अत: हमारी पैतृक सम्पत्तियों में सबसे बहुमूल्य रत्न हमारी संस्कृतभाषा है। संस्कृत भाषा को जानने के लिये पाणिनीय व्याकरण का ज्ञान अनिवार्य है। लौकिक, वैदिक उभय शब्दों का साधक होने के कारण वेदों की रक्षा का उपायभूत पाणिनीय व्याकरणशास्त्र सारे वेदाङ्गों में प्रधान है।
डॉ. पुष्पा दीक्षित ने लगभग ४० वर्षों के तप से ‘पाणिनीय अष्टाध्यायी’ के प्रक्रियाविज्ञान को स्पष्ट करने वाली एक ऐसी सर्वथा नवीन गणितीय विधि आविष्कृत की है, जिससे ‘अष्टाध्यायी’ का समग्र प्रक्रियाविज्ञान दस मास में हृद्गत हो जाता है। पाणिनि के बाद से लेकर अभी तक ३५०० वर्षों में पाणिनि को किसी ने इस प्रकार व्याख्यात नहीं किया है। वस्तुत: पाणिनि का शास्त्र गणितीय विधि पर आश्रित है, और पुष्पा दीक्षित ने उस गणितीय विधि का आविष्कार किया है।
ग्रन्थसूची
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- मूल ग्रन्थ : (हिन्दी भाषा)
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- अष्टाध्यायीसहजबोध-प्रथम भाग – सारे सार्वधातुक तिङ् और सारे सार्वधातुक कृत् प्रत्यय।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-द्वितीय भाग – सारे आर्धधातुक लकार, सनाद्यन्त धातु और नामधातु।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-तृतीय भाग आर्धधातुक कृत्।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-चतुर्थ भाग पाणिनीय क्रम से सुबन्तप्रक्रिया।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-पञ्चम भाग पाणिनीय क्रम से तद्धिताधिकारों का विवेचन।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-षष्ठ भाग कारक।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-सप्तम भाग समासप्रक्रिया।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-अष्टम भाग स्वर प्रक्रिया।
- अष्टाध्यायीसहजबोध-नवम भाग शास्त्रशेष तथा समग्रसन्धि।
- आर्धधातुक प्रत्ययों की इडागम व्यवस्था
- शीघ्रबोधव्याकरणम् – विद्यालयों तथा सामान्य तथा महाविद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली सारी पुस्तकें विज्ञान विहीन हैं। यही कारण है, इनको पढऩे से छात्रों को श्रम करके भी कुछ ज्ञान नहीं हो पाता। शीघ्रबोधव्याकरणम् इन्हीं विद्यार्थियों के लिये पाणिनीयविज्ञानानुसार रचित सरलतम व्याकरण ग्रन्थ है। इसकी शब्दरूपावलि,धातुरूपावलि तथा संक्षिप्त तिङ्कृत्कोष, पाणिनीय विज्ञान के अनुसार बनाये गये हैं।
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- मूल ग्रन्थ : (संस्कृत भाषा)
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- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-प्रथम भाग सारे सार्वधातुक तिङ् और सारे सार्वधातुक कृत् प्रत्यय
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-द्वितीय भाग सारे आर्धधातुक लकार, सनाद्यन्त धातु और नामधातु।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-तृतीय भाग आर्धधातुक कृत्।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-चतुर्थ भाग पाणिनीय क्रम से सुबन्त प्रक्रिया।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-पञ्चम भाग पाणिनीय क्रम से तद्धिताधिकारों का विवेचन।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-षष्ठ भाग कारक।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-सप्तम भाग समासप्रक्रिया।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-अष्टम भाग स्वर प्रक्रिया।
- नव्यसिद्धान्तकौमुदी-नवम भाग शास्त्रशेष तथा समग्रसन्धि।
- धात्वधिकरीयं सामान्यमङ्गकार्यम् – धात्वधिकार में वर्णित सभी तिङन्त तथा कृदन्त प्रत्ययों के लिये सारे अङ्गकार्य।
- तिङन्तकोष: (त्रयो भागा:) – इसमें सार्वधातुक तथा आर्धधातुक लकारों को पृथक् पृथक् कर दिया गया है। प्रथम खण्ड में लट्, लोट्, लङ् और विधिलिङ् लकार हैं तथा द्वितीय खण्ड में शेष सारे लकार और सनाद्यन्त प्रक्रियाएँ हैं।
- कृदन्तकोष: (द्वौ भागौ) – यह कृदन्तकोष पाणिनि की उत्सर्गापवाद पद्धति से बना है। आज तक उपलब्ध सारी रूपावलियाँ अथवा कोष धातुओं को अकारादि क्रम से रखकर बनाये गये हैं, जो कि अत्यन्त अवैज्ञानिक है। इस कृदन्तकोष में अजन्त धातुओं कोअन्तिम अक्षर के क्रम से रखा गया है तथा हलन्त धातुओं को उपधा के क्रम से रखा गया है।
- वैदिकव्याकरणम्
- भगवत: पाणिने: सप्तविभागाष्टाध्यायी
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- संस्कृत भारती से प्रकाशित ग्रन्थ
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- पाणिनीयाष्टाध्यायीसूत्रपाठ: (प्रकरणनिर्देशसमन्वित:) – इसमें समग्र अष्टाध्यायी के अधिकारों तथा प्रकरणों को शीर्षक देकर निबद्ध कर दिया गया है। साथ ही इसके सारे विषयों को अकारादिक्रम से सूचीबद्ध कर दिया गया है, जिससे कि सारी अष्टाध्यायी हस्तामलकवत् हो गई है।
- तिङ्कृत्कोष: (द्वौ भागौ)
- लकारसरणि: (चत्वारो भागा:)
- णिजन्तकोष:
- सन्नन्तकोष:
- यङन्तकोष:
- यङ्लुगन्तकोष:
- इडागम:
- पाणिनीयधातुपाठ: (सार्थ:) – इसमें अनेक धातुपाठों के अर्थों का अवलोकन करके प्रत्येक धातु का विस्तृत अर्थ दिया गया है। यथाशक्य प्रयोग भी दिये गये हैं।
- प्रक्रियानुसारिपाणिनीयधातुपाठ:
- सनाद्यन्तधातुपाठ: – इसमें सारे पाणिनीय धातुओं के सनाद्यन्त धातु बनाकर दे दिये गये हैं।
- सस्वर: पाणिनीयधातुपाठ: (सार्वधातुकप्रक्रियोपयोगी)
- सस्वर: पाणिनीयधातुपाठ: (आर्धधातुकप्रक्रियोपयोगी)
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- साहित्य कृतियाँ
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- अग्निशिखा (गीतिकाव्यम्) – सन् १९८४ में संस्कृत गीतिकाव्य ‘अग्निशिखा’ का प्रणयन तथा प्रकाशन। इस गीतिकाव्य में एक ही रस विप्रलम्भ शृङ्गार पर आश्रित ५० सर्वथा छन्दोबद्ध तथा रसाभिभूत कर देने वाले, भारत के मूर्धन्य संस्कृत विद्वानों के द्वारा प्रशंसित गीत हैं। जिसमें सारे गीत एक ही रस पर आश्रित हों, ऐसा यह प्रथम संस्कृत गीतिकाव्य है।
- शाम्भवी (गीतिकाव्यम्) – यह भी संस्कृत गीतिकाव्य है। इसके गीतों में वर्तमान सामाजिक विसंगतियों पर तीक्ष्ण अधिक्षेप है। मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमी की पत्रिका दूर्वा में इसके अनेक गीत प्रकाशित हैं।
- अपराजितवधूमहाकाव्यम् – डॉ. पूणचन्द्र शास्त्री रचित ‘अपराजितवधू’ संस्कृत महाकाव्य का सम्पादन और अनुवाद।
- प्रबुद्धभारतम् -डॉ. पूर्णचन्द्र शास्त्री रचित ‘प्रबुद्धभारतम्’ संस्कृत महाकाव्य का सम्पादन और अनुवाद।
- सौन्दर्यलहरी – आचार्य बच्चूलाल अवस्थी कृत अनुवाद की व्याख्या।
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- मल्टीमीडिया निर्माण
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- वैदिक व्याकरणम् – ई पीजी पाठशाला हेतु श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ हेतु निर्मित 8 एपीसोड।
- तिङन्तसिद्धि: – संस्कृतभारती ने 46 घण्टे की डीवीडी बनाई है। इससे पाणिनीयपद्धति से सारे धातुओं के 10 लकार सिद्ध हो जाते हैं।
- अष्टाध्यायी की अध्ययन पद्धति – उच्च शिक्षा अनुदान आयोग द्वारा ‘ज्ञान दर्शन’ में प्रसारण – 72 एपीसोड।
- तिङन्तप्रक्रिया – उच्च शिक्षा अनुदान आयोग द्वारा ‘ज्ञान दर्शन’ में प्रसारण हेतु निर्मित 78 एपीसोड।
- काशी पाण्डित्य परियोजना – आचार्य वसिष्ठ त्रिपाठी – दर्शन शास्त्र हेतु निर्मित 09 डीवीडी ।
- काशी पाण्डित्य परियोजना – आचार्य रामयत्न शुक्ल – व्याकरण शास्त्र हेतु निर्मित 08 डीवीडी ।